फर्जी रजिस्ट्री मामले में एक वकील को एसआईटी ने पकड़ा! अब तक 18 लोगों की हो चुकी है गिरफ्तारी

 

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देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में फर्जी रजिस्ट्री मामले में गठित एसआईटी टीम एक वकील को गिरफ्तार किया है। पुलिस के मुताबिक फर्जी रजिस्ट्री प्रकरण में अब तक 18 लोग हत्थे चढ़ चुके हैं।
शुक्रवार को फर्जी रजिस्ट्री मामले में मिली एक ओर सफलता पर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय सिंह ने पत्रकार वार्ता में बताया कि धारा 420/467/468/471/120बी भादवि की विवेचना में 12 अक्टूबर गुरुवार को मुख्य आरोपी हुमायूं परवेज को गिरफ्तार किया गया था, जिससे पूछताछ में उक्त प्रकरण में कुछ अन्य व्यक्तियों के नाम भी प्रकाश आये थे। जिनके विरूद्ध साक्ष्य संकलन की कार्यवाही करते हुए देर रात्रि एसआईटी टीम द्वारा प्रकाश में आये एक अन्य आरोपी वकील देवराज तिवारी पुत्र अर्जुन प्रसाद निवासी THDC कॉलोनी निकट मधुर विहार फेज 2 बंजारा वाला, रोड नेहरू कॉलोनी, देहरादून को उपरोक्त मुकदमें में गिरफ्तार किया।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने बताया कि आरोपी ने पूछताछ में बताया कि वर्ष 2014 में उसने मदन मोहन शर्मा स्व. गिरधारी लाल निवासी दूधली हाल निवासी दिल्ली की तरफ से खसरा नंबर 594, 595 मौजा माजरा का वाद सिविल सीनियर डिवीजन में कैंट बोर्ड से लड़ा था। वर्ष 2017 में उसके द्वारा मदन मोहन शर्मा के वाद को वापस ले लिया गया। वह समीर के गोल्डन फॉरेस्ट के केस को भी लड़ रहा था। एक बार समीर, हुमायूं परवेज को उसके चैम्बर में लाया था, तब उसने बताया कि माज़रा की एक जमीन है, जिसका केस वह मदन मोहन शर्मा दूधली वाले के नाम से लड़ रहा है। आरोपी ने समीर से कहा कि इस केस में जीतने के चांस कम है। लिहाजा कोई ऐसा आदमी मिल जाये, जिसके नाम से रजिस्ट्री हो जाये तो काम हो जायेगा।
समीर की सहारनपुर में रजिस्ट्रार ऑफिस में पहचान थी तो उसने वहां से जरूरी जानकारी जुटा ली और फिर कुछ दिन बाद अभियुक्त तिवारी, समीर, हुमायूं परवेज तथा समीर का साला शमशाद, समीर के किराये के घर सी-15 टर्नर रोड में मिले, जहां यह तय हुआ कि उक्त जमीन की रजिस्ट्री उसके मूल मालिक लाला सरणी मल से हुमायूं के पिता जलीलू रहमान तथा लाला मणिराम से अभियुक्त के पिता अर्जुन प्रसाद के नाम पर करवाई जायेगी और बाद में जो भी पैसा मिलेगा, उसको सब आपस में बांट लेंगे।
योजना के मुताबिक समीर कामयाब पुराने पेपर लेने के लिए सहारनपुर गया और अब्दुल गनी कबाड़ी की दुकान से पुरानी रद्दी के कोरे पेपर लाया जो रजिस्ट्री बनाने में काम आने थे। उसके बाद हुमायूँ और समीर कामयाब सहारनपुर रिकॉर्ड रूम में फर्जी रजिस्ट्री लगाने से सम्बन्धित जानकारी लेने सहारनपुर गये, जहां उन्होनें देव कुमार पुत्र शोभा राम निवासी मोहल्ला नवीन नगर सहारनपुर, जो रिकार्ड रूम में काम करता था तथा पहले से ही समीर का परिचित था, से रजिस्ट्री बदलने के सम्बन्ध में जानकारी ली तो उसके द्वारा बताया गया की वर्ष 1958 की जिल्द का कोई इंडेक्स नहीं बना हुआ है, तुम इसी वर्ष की फर्जी रजिस्ट्री बना कर तैयार कर लो और साइज के लिए देव कुमार द्वारा किसी अन्य रजिस्ट्री की फोटो स्टेट दी और उसके बाद ये दोनों समीर कामयाब के घर पहुंचे।
फर्जी रजिस्ट्री तैयार करने के लिए पेपर की बिल्कुल उसी साइज की कटिंग और लाइनिंग समीर के द्वारा की गयी तथा छपाई समीर कामयाब ने कार्ड वालों के यहाँ से करवाई उसके बाद फर्जी रजिस्ट्री के पेपर को कॉफी या चाय के पानी में डुबा कर उन्हें सुखाते हुए उन पर प्रेस कर तैयार किये गये, फिर लाला सरणीमल एवं लाला मणिराम की 55 बीघा जमीन खसरा नंबर 594, 595 की वर्ष 1958 की फर्जी रजिस्ट्री हुमायूं के पिता जलीलू रहमान एवं आरोपी के पिता अर्जुन प्रसाद के नाम पर आरोपी के घर पर सब लोगों के सामने तैयार की गयी। अंग्रेजी की ड्राफ्टिंग अभियुक्त तिवारी द्वारा तैयार की गयी थी, जिसे समीर कामयाब द्वारा बुलाई गई लड़की सना सैफी पुत्री इकबाल निवासी आजाद कॉलोनी टर्नर रोड के द्वारा रजिस्ट्री के कागजों में नकल किया गया। यह काम सना ने समीर कामयाब के कहने पर किया था।

रिकॉर्ड रूम ने जिल्द में चिपकाने लिए थे 3 लाख
फर्जी रजिस्ट्री तैयार होने के बाद उसे सहारनपुर के रिकॉर्ड रूम में जिल्द में चिपकाने के लिए 3 लाख रुपये देव कुमार निवासी सहारनपुर को देने की बात हुई और 3 लाख रुपये एवं फर्जी रजिस्ट्री लेकर शमशाद को भेजा गया, जिसने देव कुमार को 3 लाख रुपये व फर्जी रजिस्ट्री चिपकाने के लिए दे दी। दो-तीन दिन बाद उसकी नकल समीर कामयाब, वकील अहमद और हुमायूं परवेज सहारनपुर से निकलवा कर ले आए और लाला सरणीमल एवं लाला मणिराम वाली 55 बीघा जमीन की पैमाइश करने के लिए हुमायूँ द्वारा एसडीएम के यहां एक वाद दायर किया गया और उसकी एक फाइल हाई कोर्ट में भी चला दी थी। हाई कोर्ट के आदेश से संयुक्त टीम द्वारा उक्त भूमि का निरीक्षण किया गया तथा हुमायूं परवेज को कागज दिखाने को भी कहा परंतु उक्त जमीन वर्ष 1958 में ही तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा रक्षा मंत्रालय को हस्तान्तरित की गयी थी, जिस कारण हुमायूं परवेज का वाद खारिज हो गया और सारे मंसूबों पर पानी फिर गया।

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